*लय से ताल तक के सफर का नाम होता है लताजी*
लता शब्द महज दो हर्फ नहीं है बल्कि ल से लय और ता से ताल के बीच के समूचे विस्तार की यात्रा का नाम है लता मंगेशकरजी। आज से जीवन दो हिस्सों में बाँटा जाएगा। एक लताजी के समय का और एक लताजी से बाद का। लताजी के साथ “जी” तो स्वयं ईश्वर ने ही लगाकर भेजा है। भारत तो स्वयं उसे “दीदी” कहता है। सुरों की गूँज जहाँ तलक पहुँच सकती है, उनके व्यक्तित्व का दायरा भी उतना ही मान सकते हैं। लताजी ने एक परंपरा स्थापित है तानसेनजी की, चैतन्य महाप्रभुजी की, कि संगीत आत्मा का जुड़ाव है। कच्चे कंधों से भारतरत्न तक का कारवां अनगिनत संघर्षों पर हौसलों और हिम्मत की जीत की इबारता मांड रहा है। यदि लताजी के मिले दुलार को मापने का कोई अगर पैमाना होता तो शायद डिजिटल अंक “अनंत” ही मुद्रित करते। अभी तक कहा जाता था कि लताजी संगीत के पर्याय रहीं हैं, मगर आज से यह कहा जाना तय है कि ‘संगीत का मतलब लताजी है’। सुरों को एक सम्मान दिया हैं लताजी अपने कंठों से, परिभाषा दी है आलाप से। लताजी संगीत और गायन की संस्था है। संगीत का पूरा का सारा सजीव इनसाइक्लोपीडिया हैं लताजी। लताजी संख्याओं से ऊपर है, कहीं ऊपर। लताजी गानों की संख्याओं के एवरेस्ट पर होकर भी प्रशांत महासागर सी विशालता रखती हैं। सादगी और संवेदना की प्रतिमूर्ति लताजी ने हक की लड़ाईयां लड़ी जहां शोषण नजर आया और नयी प्रतिभाओं को जगह देने के लिए पुरस्कार की दौड़ से स्वयं बाहर हो लीं। एक समय बाद गानों से दूरी इसलिए बना ली ताकि नयों को जगह मिले। व्यक्तिगत रूप से मुझे उनके वीर-जारा मूवी के गाने बहुत पसंद हैं। लताजी जब गातीं हैं तो लगता है खुद सरस्वती किसी रूप में जमीं पर उतरी हैं। लताजी सामान्य रूप से भी इतनी मखमली आवाज से बोलती हैं मानो रिदम में ही सब कुछ कहा जा रहा हो। लताजी का जाना तो तय था एक दिन। मगर लगता है अब से वे हर एक के मन के मंदिर में सरस्वती के रूप बैठ गई हैं और हम प्रतिरोज उनके गानों को गुनगुनाकर उनकी आरती किया करेंगे। श्रद्धांजलि लताजी।