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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बिखरे साहित्य के रंग
स्वतंत्रता सेनानी व कवित्री सरोजिनी नायडू का जन्म दिवस
महिला दिवस के रूप में मनाया गया

भीलवाड़ा –
कोहिनूर सेवा समिति के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष पर कवि सम्मेलन का आयोजन सेठ गजाधर मानसिंगका धर्मशाला में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ राजेंद्र देश प्रेमी कि सरस्वती वंदना से हुआ।
समिति संयोजक कवि रामनिवास रोनीराज ने बताया कि कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नगर परिषद की पूर्व सभापति मंजू पोखरना थी, वहीं अध्यक्षता सहकार भारती के छीतरमल जी लड्डा ने की, विशिष्ट अतिथि के रूप में उदय लाल समदानी, मिट्ठू लाल स्वर्णकार, शहर इकाई अध्यक्ष कृष्ण गोपाल अग्रवाल थे। इस अवसर पर मोड का निम्बाहेड़ा के प्रसिद्ध शायर जमालुद्दीन जौहर का जन्म दिवस धूमधाम से पगड़ी पहनाकर व शॉल ओढ़ाकर मनाया गया तथा प्रख्यात गीतकार राजेंद्र गोपाल व्यास की रचना ’’बताशा को ट्रॉफी समझते थे आज संपन्नता में भी कितने रूठे हैं हम’’ पढ़कर सम्मेलन को परवान चढ़ाया।
वही मांडल के प्रसिद्ध ग़ज़ल कार अजीज जख्मीने ’’मर कर भी शायर अपने नगमों में जिंदा रहता है’’ पढ़कर खूब वाहवाही लूटी, वही जनकवि रतन कुमार चटुल की रचना ’’घर में किसका डर होता है, घर तो आखिरकार होता है’’ ने खूब तालियां बटोरी, ओम उज्जवल ने ’’जीवन तो प्यारे खेल है पैसा हाथ का मेल है’’ व्यंग्यकार दुर्गेश पानेरी ने ’’चारों खूंट है राजाराम में सारी सृष्टि रो बसेर’’ गीतकार बैंक अधिकारी रमेश चौहान ने ’’मैं कहीं भी रहूं तेरी याद साथ है’’, मांडलगढ़ के कवि महेंद्र ललकार ने ’’राजस्थान रा कण कण में महिला रो त्याग बलिदान स्वाभिमान बिखरयो है’’, दिव्या ओबरॉय ’’सृष्टि का प्रारंभ है मां सृष्टि स्वास्ती स्वर वाचन है मां’’, निशांत सोनी ने ’’गम का दामन पकड़ा खुशी की उंगली छोड़ आया’’, उषा अग्रवाल ने भी काव्य पाठ

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